Tuesday, December 6, 2011

कोलावेरी डी और लोक


आज कोलावेरी डी गीत पहली बार सुना, और वाकई में यह गीत कुछ हट के लगा. इसकी गौर करने लायक तीन चार विशेषताएं है पहली की इसका गायक spontaneously एक गीत शुरू करता है जो पहले से कहीं न तो लिखा हुआ है और न किसी का चुराया हुआ है. जिसमे केवल कुछ शब्द है जिनके अलग अलग होने पर अपने अलग अर्थ हो सकते हैं पर यहाँ पर शब्द के बाद शब्द जिस क्रम में आते है उसमे कनेक्टिविटी अपने आप आती चली जाती है और बहुत कम शब्दों में भी गीत अपने पूरे भाव के साथ श्रोता को प्रभावित करता जाता है. इस गीत में स्क्रिप्ट का अभाव, spontanity, मस्ती और सामूहिकता कुछ हद तक इसमें लोकगीतों सा प्रभाव उत्पन्न करती है. साथ ही साथ शादी के बैंड की तरह की धुन और १ २ ३ ४... का इस्तेमाल भी इस गीत को लोक के नज़दीक ले जाता है. शब्द चाहे अंग्रेजी के हों किन्तु इस गीत में हिंदी लोक की सुगंधी बराबर झलकती है.