कौन पूरा करेगा सावनी का सपना
संदीप कुमार,
बगोदर (गिरिडीह), झारखंड से लौटकर
ग्यारह बरस की सावनी के सपने से हो सकता है आप इत्तफाक न रखें. मगर अमूमन घुमक्कड़ और फक्कड़ मानी जाने वाली झारखंड की बिरहोर आदिम जनजाति की सावनी के मन में उम्मीदों का सावन उमड़-घुमड़ रहा है. वह दीदी बनना चहती है. ‘दीदी जी’ मतलब मैडम. मैडम मतलब मास्टरनी. जी हां, इस इलाके के लोग स्कूलों में पढ़ाने वाली शिक्षिकाओं को मैडम से ज्यादा ‘दीदी जी’ ही कहते हैं. और सावनी का सपना किसी स्कूल में ‘दीदी जी’ का बनना है, जहां वो बच्चों को पढ़ाएगी और अगर बच्चे बदमाशी करेंगे तो प्यार से उनकी ‘कनेठी’ भी कसेगी.
सावनी पांचवीं क्लास में पढ़ती है. आप जानना चाहेंगे किस स्कूल में पढ़ती है वह? एक ऐसा स्कूल जहां दरो-दीवार नहीं, अनंत तक खुला आसमान है. इस स्कूल में सावनी और उसके जैसे चालीसेक बच्चों के सपने पल रहे हैं.
जी हां, सावनी का स्कूल एक पेड़ के नीचे चलता है. चिलचिलाती धूम में भी, झमाझम बारिश में भी और कंपकंपाती ठंड में भी. पेड़ के नीचे बोरा बिछाकर बैठते हैं सभी बच्चे. यहीं सुबह क्लास लगती है. पहली से पांचवीं तक के बच्चे एक साथ ही बैठते हैं. असल में 2004 में शिक्षा गारंटी योजना (एजुकेशन गारंटी स्कीम-ईजीएस) के तहत झारखंड के पिछड़े इलाके बगोदर में यह केंद्र खोला गया.
पास के गांव कानाडीह से महादेव महतो नाम का एक युवा किसान सामुदायिक शिक्षक के तौर पर यहां पढ़ाने पहुंचा. बिरहोर समुदाय की ये पहली पीढ़ी थी जिन्हें पढ़ने का मौका मिल रहा था. महादेव महतो की कोशिशों के बाद बच्चों ने पढ़ने में दिलचस्पी ली और उनके अभिभावकों ने पढ़ाने में.
साल 2006 में ईजीएस सेंटर को उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय के तौर पर अपग्रेड कर दिया गया. लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ नसीब नहीं हुआ. तब भी स्कूल खुले में चलता था और अब भी उसे छत नसीब नहीं हुई. हां, इस बीच, पढ़ाने के लिए एक और सामुदायिक शिक्षक मुश्ताक अहमद यहां आने लगे.
जहां तक सावनी की बात है तो उसका परिवार बगोदर प्रखंड के पिपराडीह बिरहोरटंडा में रहता है. आबादी के हिसाब से लुप्तप्राय होती जा रही बिरहोर आदिम जनजाति के कुल जमा 13 परिवार यहां बसते हैं. जंगल के करीब ही बिरहोरों की झोपड़ियों का ये झुरमुट है. पिपराडीह बिरहोरटंडा झारखंड के उग्रवाद प्रभावित गिरिडीह जिले का वो इलाका है जहां आज भी लोग बेबसी में जी रहे हैं.
वैसे पिपराडीह बिरहोरटंडा में आंगनबाड़ी केंद्र भी खोला गया जहां सावित्री देवी सेविका के तौर पर सेवा देने लगीं. लेकिन आंगनबाड़ी केंद्र के लिए भी कोई भवन नहीं बना और ये भी खुले में चलता है जहां देश के नौनिहाल पलते और पढ़ते हैं.
गौरतलब है कि 14 साल तक के बच्चों को शिक्षा देने के लिए कानून तक बन गया है. इससे पहले भी सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर बच्चे को स्कूल तक पहुंचाने की कवायद हो रही है. स्कूलों में अतिरिक्त कमरे बन रहे हैं. सामुदायिक शिक्षक चुने जा रहे हैं. स्कूलों का अपग्रेडेशन हो रहा है. मोहल्लों में शिक्षा गारंटी केंद्र खुल रहे हैं. टोलों में आंगनबाड़ी केंद्र खोले जा रहे हैं. बहुत कुछ हो रहा है या फिर होता दिख रहा है हर बच्चे को शिक्षित करने के लिए.
लेकिन विडंबना यह है कि पिपराडीह बिरहोरटंडा में एक अदद स्कूल अब तक नहीं बन पाया है. ग्राम शिक्षा समिति के अध्यक्ष जटू बिरहोर कहते हैं, “पिछले पांच-छह सालों से पेड़ के नीचे स्कूल चल रहा है और इधर कोई ध्यान ही नहीं देता.”
सावनी वहां पढ़ाना चाहती है जहां के स्कूल में कमरे हों, बिल्डिंग हो. जाहिर तौर पर सावनी और उसके जैसे और बच्चे ये भी चाहते हैं कि बिरहोरटंडा में स्कूल का भवन बने. |
हालांकि इस समुदाय को आश्वासन मिला है कि जल्द ही शिक्षा समिति के फंड में स्कूल के भवन निर्माण के लिए पैसे आएंगे लेकिन अभी ये दूर की कौड़ी ही नजर आ रही है.
शिक्षक महादेव महतो कहते हैं कि बारिश के दिनों में ठीक से क्लास तक नहीं लग पाती है. लेकिन खुशी की बात ये है कि बगैर स्कूल के जमीन में बोरों पर बैठकर-पढ़कर बच्चों का एक पूरा बैच यहां से पाचवीं पास कर निकल गया. अब ये बच्चे पास के ही पिपराडीह मध्य विद्यालय में छठी क्लास में पढ़ने जाते हैं. इनमें गहनी और बिरेश जैसी लड़कियां हैं तो प्रकाश, बीरेंद्र और संतोष बिरहोर जैसे लड़के भी हैं जो अब कई टोलो-मोहल्लों से आए बच्चों को पढ़ाई-लिखाई में टक्कर दे रहे हैं.
अभी पिपराडीह बिरहोरटंडा के भवनहीन उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय में 45 बच्चे हैं. पांचवीं क्लास में सावनी समेत नौ बच्चे पढ़ रहे हैं. लड़का-लड़की में कोई भेद नहीं. हर बच्चा पढ़ रहा है. खास बात यह है कि पिपराडीह बिरहोर समुदाय की ये पहली पीढ़ी है जो व्यवस्थिति तौर पर पढ़ रही है और इन बच्चों के अनपढ़ मां-बाप खुश हैं कि उनका बच्चा अब ‘बुड़बक’ नहीं रहेगा.
लेकिन गिरधारी बिरहोर बड़ा वाजिब सवाल उठाते हैं. कहते हैं कि दूसरी जगह के स्कूलों में ‘दुतल्ला ठोका गया’ (दो मंजिला भवन बन गया) और हमारे यहां एक कमरा भी नहीं बना. गिरधारी के इस सवाल का जवाब दिया जाना जरूरी है, नहीं तो ऐसा लगेगा कि मौजूदा व्यवस्था के लिए बिरहोर कोई मायने नहीं रखते. ना वोट बैंक के लिहाज से और ना ही विरोध करने की जमात के तौर पर.
गिरधारी बिरहोर की ही बेटी है सावनी. वह ‘दीदी जी’ तो बनना चाहती हैं लेकिन अपने ही बिरहोरटंडा के स्कूल में नहीं. जानते हैं क्यों? क्योंकि यहां के स्कूल में तो ‘घर’ (कमरा) है ही नहीं. सावनी वहां पढ़ाना चाहती है जहां के स्कूल में कमरे हों, बिल्डिंग हो. जाहिर तौर पर सावनी और उसके जैसे और बच्चे ये भी चाहते हैं कि बिरहोरटंडा में स्कूल का भवन बने. जब-जब यहां के बच्चे पास के गांव जाते हैं तो वहां के स्कूल भवन को ललचाई निगाहों से देखते ही रह जाते हैं.
सावनी पिपराडीह मिडिल स्कूल की तरफ इशारा करके जब कहती है कि अब ‘हमो वहैं पढ़बे’ तब सावनी के दर्द को बखूबी महसूसा जा सकता है. सावनी के इस दर्द को समझना जरूरी है. कोई पढ़ना चाहता है, बढ़ना चाहता है तो उसके लिए मुकम्मल इंतजाम करने में कोताही दिखाना नौनिहालों के साथ मजाक ही होगा. और ये भी ध्यान रखना होगा कि सावनी का सुंदर सपना कहीं टूट ना जाए
10 comments:
सावनी के लिए मंगलकामनाएँ.
सावनी का ये सपना पूर्ण हो!!
इस नए चिटठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
सावनी के लिए शुभकामनाएं... आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा.. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है... हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
ब्लागिंग के अलावा आप इंटरनेट के जरिए अतिरिक्त आमदनी भी कर सकते हैं. इच्छा हो तो यहां पधारें-
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rapat pasand aai aapki.
shubhkamnayein in bachcho ke liye....aur aapke naye-navele blog ke liye bhi...
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अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
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भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
bahut hi achchi post.aankh khol dene waali rapat.
request plz word verification hata den.
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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