मलयालम के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार ओएनवी कुरूप को वर्ष 2007 के लिए 43वां और उर्दू के नामचीन शायर शहरयार को वर्ष 2008 के लिए 44वां ज्ञानपीठ दिया जायेगा.
वर्ष 2007 के लिए 43 वें ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले ओएनवी कुरूप का जन्म 1931 में हुआ और वह समकालीन मलयालम कविता की आवाज बने. उन्होंने प्रगतिशील लेखक के तौर पर अपने साहित्य सफ़र की शुरूआत की और वक्त के साथ मानवतावादी विचारधारा को सुदृढ़ किया. मगर उन्होंने सामाजिक सोच और सरोकारों का दामन कभी नहीं छोड़ा.
कुरूप पर बाल्मिकी और कालीदास जैसे क्लासिक लेखकों और टैगोर जैसे आधुनिक लेखकों का गहरा प्रभाव पड़ा. उनकी ''''उज्जयिनी'' और ''स्वयंवरम'' जैसी लंबी कविताओं ने मलयालम कविता को समृद्ध किया. उनकी कविता में संगीतमयता के साथ मनोवैज्ञानिक गहराई भी है. कुरूप के अब तक 20 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और उन्होंने गद्य लेखन भी किया है. कुरूप को केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, वयलार पुरस्कार और पद्मश्री से नवाजा गया है.
वर्ष 2008 के लिए 44 वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गये शहरयार का जन्म 1936 में हुआ. बेहद जानकार और विद्वान शायर के तौर पर अपनी रचनाओं के जरिए वह स्व अनुभूतियों और खुद की कोशिश से आधुनिक वक्त की समस्याओं को समझने की कोशिश करते नजर आते हैं.
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं, जुस्तजू जिस की थी उसको तो न पाया हमने, दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये, कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता. जैसे गीत लिख कर हिंदी फ़िल्म जगत में शहरयार बेहद लोकप्रिय हुये हैं.
इस वक्त की जदीद उर्दू शायरी को गढ़ने में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फ़िराक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया.
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