-श्रद्धा-
प्रतिभाओ को खिलाना था काम जिनका
साँप की तरह कुंडली मारे बैठे है वे
अवसर पर
केवल जाति है
जिनका सरोकार
शैक्षिक उन्नतता की
उन्हें नहीं दरकार
वे तो आचार्य द्रोण है
सदा से ही बैठे है
एकलव्य के अंगूठे की ताक में
और फांस देते है
हर उस कबूतर की गर्दन
जिसे अपने पंखो पर
जरा भी होने पता था
नाज़ .
2 comments:
'समय साक्षी' पर इतना सुन्दर कथ्य 'श्रद्धा' ने कहा है उन्हें बधाई .
उत्तम भाव .
प्रतिभाओ को खिलाना था काम जिनका
साँप की तरह कुंडली मारे बैठे है वे
अच्छा लगा.
-विजय तिवारी "किसलय" जबलपुर
सकारात्मक एवं आदर्श ब्लागिंग की दिशा में अग्रसर होना ब्लागर्स का दायित्त्व है : जबलपुर ब्लागिंग कार्यशाला पर विशेष.
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