Friday, January 19, 2024

फिर एक बार

इस ब्लॉग से बहुत दिनों के बाद दोबारा अपनी बातों को रखने का प्रयास रहेगा.
 

Tuesday, December 6, 2011

कोलावेरी डी और लोक


आज कोलावेरी डी गीत पहली बार सुना, और वाकई में यह गीत कुछ हट के लगा. इसकी गौर करने लायक तीन चार विशेषताएं है पहली की इसका गायक spontaneously एक गीत शुरू करता है जो पहले से कहीं न तो लिखा हुआ है और न किसी का चुराया हुआ है. जिसमे केवल कुछ शब्द है जिनके अलग अलग होने पर अपने अलग अर्थ हो सकते हैं पर यहाँ पर शब्द के बाद शब्द जिस क्रम में आते है उसमे कनेक्टिविटी अपने आप आती चली जाती है और बहुत कम शब्दों में भी गीत अपने पूरे भाव के साथ श्रोता को प्रभावित करता जाता है. इस गीत में स्क्रिप्ट का अभाव, spontanity, मस्ती और सामूहिकता कुछ हद तक इसमें लोकगीतों सा प्रभाव उत्पन्न करती है. साथ ही साथ शादी के बैंड की तरह की धुन और १ २ ३ ४... का इस्तेमाल भी इस गीत को लोक के नज़दीक ले जाता है. शब्द चाहे अंग्रेजी के हों किन्तु इस गीत में हिंदी लोक की सुगंधी बराबर झलकती है.

Sunday, October 2, 2011

बापू तेरा राम राज्य गुमनाम कर दिया लोगों ने






यह कविता ठाकुर इन्द्रदेव सिंह " इन्द्र कवि" के भोजपुरी तथा हिंदी गीतों के संग्रह "इन्द्र गीतायन" (१९८७ में प्रकाशित) में संकलित है और कई अर्थों में आज के सन्दर्भों में भी प्रासंगिक बनी हुई है.

बापू तेरा राम राज्य गुमनाम कर दिया लोगों ने,
राजघाट के वादों को बदनाम कर दिया लोगों ने,
सत्ता के सौदागर बापू नित नाम तुम्हारा लेते है,
बापू तेरा नाम बेच ये सिंघासन पर सोते हैं,
व्यर्थ बन गई सत्य अहिंसा भूल चुके हैं नैतिकता,
बचन कर्म में मेल नहीं नित बीज द्वेष का बोते हैं,
देश प्रेम को ताख पे रख कुहराम कर दिया लोगों ने,
अत्याचार हरिजनों पर भी आज निरंतर होते हैं,
अगड़ित घर और अगड़ित जीवन दंगों में स्वाहा होते हैं,
जाति युद्ध भड़काए जाते वोट प्राप्ति की आशा में,
तीस कोटि जन आधा खाते दवा को रोगी रोते हैं,
राजनीति खटमली स्वार्थ सरनाम कर दिया लोगों ने,
शोषण भ्रस्टाचार भतीजावाद लूट का दौर गरम,
बापू इस आजाद देश में बची नहीं है कहीं शरम,
अगर यही रफ़्तार रही फिर भला देश का राम करे,
लेना होगा जन्म कृष्ण को या दिव्य मूर्ति गौतम,
लोकतंत्र का यह कैसा अंजाम कर दिया लोगों ने.

साभार- ठाकुर इन्द्रदेव सिंह " इन्द्र कवि"

Saturday, September 24, 2011

अभिलाषाएं-६


उपवन

चलें वहीँ पर घुमने देश प्रेम में झुमने,
श्रद्धा से जिस धुल को आते हों सब चूमने,
जहाँ गा रही हों समाधियाँ बलिदानों के गीत को,
वहीँ हमारे फूल चढ़ाना उपवन कहे बहार से.

साभार- ठाकुर इन्द्रदेव सिंह " इन्द्र कवि"

अभिलाषाएं-५


नाव

छिड़ा जहाँ संग्राम हो और आराम हराम हो,
घायल सेना के लिए जहाँ न कुछ बिश्राम है,
गरम खून की धार नदी बन कर उफनाती हो जहाँ,
उस सरिता में मुझे बहाना नाव कहे पतवार से.

साभार- ठाकुर इन्द्रदेव सिंह " इन्द्र कवि"

अभिलाषाएं-४


चमड़ा

जहाँ बर्फ की हो गलन ठंडा ठंडा हो पवन,
ठिठरन से हों कांपते जहाँ सैनिकों के बदन,
उस पथ पर चलने वालों को अर्पित हो यह मेरा तन,
मेरी खाल के वस्त्र बनाना चमड़ा कहे चमार से.

साभार- ठाकुर इन्द्रदेव सिंह " इन्द्र कवि"

अभिलाषाएं- ३


सोना

मै न तिजोरी में रहूँ छांह न धरती की गहुँ,
खोटे खरे स्वाभाव की बात कसौटी से कहूँ,
आये समय कभी संकट का देश पे मुझको वार दे,
ऐसा जेवर मुझे बनाना सोना कहे सोनार से.

साभार- ठाकुर इन्द्रदेव सिंह " इन्द्र कवि"