Saturday, September 24, 2011

अभिलाषाएं-४


चमड़ा

जहाँ बर्फ की हो गलन ठंडा ठंडा हो पवन,
ठिठरन से हों कांपते जहाँ सैनिकों के बदन,
उस पथ पर चलने वालों को अर्पित हो यह मेरा तन,
मेरी खाल के वस्त्र बनाना चमड़ा कहे चमार से.

साभार- ठाकुर इन्द्रदेव सिंह " इन्द्र कवि"

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