Saturday, September 24, 2011

अभिलाषाएं-५


नाव

छिड़ा जहाँ संग्राम हो और आराम हराम हो,
घायल सेना के लिए जहाँ न कुछ बिश्राम है,
गरम खून की धार नदी बन कर उफनाती हो जहाँ,
उस सरिता में मुझे बहाना नाव कहे पतवार से.

साभार- ठाकुर इन्द्रदेव सिंह " इन्द्र कवि"

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