Wednesday, August 3, 2011

परंपरागत विषयों की जरुरत और प्रासंगिकता


कुछ लोग इतिहास और भूगोल को नहीं सिर्फ तकनीकी को महत्वपूर्ण मानते हैं. अपने ही सुर को सच्चा और पक्का सुर मानने वाले ऐसे लोगों के लिए दूसरों के अनुभव झूठे और अपने अनुभव ही सच्चे होते है.
बहरहाल तकनीकी के विकसित होने का भी अपना इतिहास होता है और भौगोलिक आवश्यकताएं तकनीकी को जन्म देने से लेकर उसके फेरबदल तक में अहम् भूमिका निभाती हैं. पिछले दिनो इतिहास, हिंदी, संस्कृत जैसे विषयों को दरकिनार करने की कोशिश जोरों पर थी. पर शिक्षकों और छात्रों के भारी विरोध के बाद दरकिनार किये गए ये विषय जैसे तैसे चले जा रहे हैं. जिस तरह मशीनों का इतिहास जाने बिना आप मशीन को नहीं समझ सकते और उसका विकास नहीं कर सकते उसी तरह मनुष्य का इतिहास जाने बिना आप मनुष्य को नहीं समझ सकते. तकनीकी तौर पर आप चाहे कितना शशक्त हो जाएँ जिस समाज में आप रहते है उससे चाहकर भी कट नहीं सकते और उस समाज की सोच आपको निश्चित तौर पर प्रभावित भी करेगी. कभी आपको पीछे धकेलेगी तो कभी आगे बढ़ने का हौसला देगी. लेकिन जब किसी मनुष्य या समाज की सोच आपको पीछे धकेलेगी उस समय उस सोच का इतिहास जान कर ही आप उससे उबर पाएंगे. किसी मनुष्य कि सोच को आप उसका इतिहास और भूगोल जाने बिना नहीं समझ सकते तो फिर किसी देश के इतिहास और भूगोल को जाने बिना क्या आप आगे बढ़ सकते है? इसलिए इन परंपरागत विषयों की जरुरत और प्रासंगिकता कभी ख़त्म नहीं हो सकती.

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