Saturday, August 27, 2011

जान बची और लाखों पाए, लौट के बुद्धू घर को आये ... ... ...



शुक्र है की भारत सरकार ने देर आये दुरुस्त आये के मुहावरे को सच कर दिखाते हुए, संविधान की गरिमा को सर्वोपरि बताया और अन्ना के अनशन की गैर जरुरी धमकियों से ऊपर उठने का साहस दिखाया. अगर आज अन्ना की जिद मान ली जाये तो कल ऐसे लाखों आन्दोलन खड़े हो जायेंगे जो समुदाय विशेष या मांग विशेष या मुद्दा विशेष को आधार बना कर संख्याबल दिखाते हुए अनशन करेंगे. इनमे से जिन समुदायों की मीडिया पर पकड़ होगी वो टेलीविजन पर दिन रात अपना भोपू बजाते हुए नित नई क्रांतियाँ करते रहेंगे और अपनी जायज नाजायज मांगों के लिए यूँ ही जिद करेंगे. माना की सरकार के ज़्यादातर नेता भ्रस्टाचार में लिप्त है और उनके चेहरे ही सामने नहीं आने चाहिए बल्कि उनके संपत्ति भी जब्त की जानी चाहिए. पर इसके लिए जनलोकपाल के तहत एक पूरा अलग और नया भ्रष्टाचार तंत्र खड़ा कर देना कहा तक न्याय संगत है. इसकी क्या गारंटी है की सिविल सोसायटी के लोग जो इस जनलोकपाल की वकालत कर रहे है उनका ईमान कभी ख़राब नहीं होगा. आज ही आपस में चर्चा करते हुए कुछ वकीलों ने कहा इस जनलोकपाल के आ जाने से कुछ और नहीं होगा बस 'रेट' बढ़ जायेंगे. याने की घूस ज़्यादा देनी पड़ेगी क्योंकि पकडे जाने का जोखिम भी बड़ा है और सजा भी बड़ी. तो हमें समझना होगा की इस देश के चरित्र में भ्रस्टाचार पूरी तरह रच बस चुका है. इसके लिए कुछ नए इलाज ढूडने पड़ेंगे क्योंकि यह बिमारी हद से ज्यादा बढ़ चुकी है. अब अन्ना टीम ही जनलोकपाल को सरकार से जिन शर्तों के साथ मनवाने पर अड़ी हुई है वह उसकी हठधर्मिता को दर्शाता है, और कई बार शक पैदा होता है इसमें जरूर इन लोगों का कोई निजी स्वार्थ होगा. अन्यथा ये अन्ना को समझाते की इतनी बार देखा एक बार और सही, सरकार को एक मौका और देते है . पर तब ऐसा नहीं हुआ धीरे धीरे लोगों को भी जनलोकपाल के इस किस्से से उब होने लग गई. जैसे कि अन्ना को गिरफ्तार करने की गलती सरकार ने की थी ठीक वैसी ही गलतियाँ अति उत्साह में अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी ने शुरू कर दी एक ने अपने आप को सर्वेसर्वा समझते हुए सरकार को अपने इशारे पर चलने की हिदायत दी और दूसरी ने तरह तरह के स्वांग रचा कर नेताओ की नौटंकी की, बची खुची क़सर ओमपुरी जी ने पूरी कर दी. खैर इस आन्दोलन में जो भंडारे लगे उसका पैसा कहाँ से आया, जो झंडे और बैनर आये उसका पैसा कहाँ से आया इसका जवाब फुर्सत से सरकार अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी से अब निकलवा ही लेगी. शायद इसीलिए दोनों के चेहरे आज जीत कि जश्न के साथ चमक नहीं रहे थे बल्कि लटके हुए थे. क्योंकि इस जीत का सच वे अच्छी तरह से जानते थे. अन्ना के कंधे पर रखकर जो बन्दुक उन्होंने सरकार पर तानी थी उसका निशाना पूरी तरह चूक गया. दरसल कांग्रेस और बी जे पी इस कदर मिल जाएँगी इसकी उम्मीद इस कार्पोरेट प्लस एन जी ओ समर्थित आन्दोलन को नहीं था. अब सरकार जो बिल बनाएगी वो सरकार पर कितना नकेल कसेगा उसके बारे में कुछ कहना तो मुश्किल है पर आज कि चर्चा से यह बात तो स्पष्ट हो गई कि अब कार्पोरेट हाउसों, एन जी ओ और मीडिया चैनलों तुम्हारी खैर नहीं. खैर ख़ुशी इस बात कि है कि अन्ना जी आपकी जान बची सरकार ने लाखों पाए और लौट के बुद्धू याने कि जनता घर को आये............

1 comment:

daiannamaccormack said...

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