Sunday, August 21, 2011

मीडिया और आन्दोलन


पता नहीं यह कैसा आन्दोलन है? ऐसा लग रहा है की देश की और समस्याएँ कहीं विलुप्त हो गयी है. अब बस अन्ना के इस आन्दोलन के सिवा देश में कुछ घट ही नहीं रहा. क्या सचमुच ऐसा ही है? सोचिये, अगर अन्ना का यह आन्दोलन मीडिया को ना मिला होता तो वह अभी क्या कर रहा होता. समाचार चैनलों पर डूबते सेंसेक्स और चढ़ते सोने का भाव सुर्खियाँ बटोर रहे होते. टी.वी. के सारे कलाकार जन्माष्टमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मना रहे होते. या फिर महाराष्ट्र की दही हांडी मे कौन सी जगह पर मटका कितनी उचाईं पर लटकाया गया है और कहाँ पर कितना ईनाम है ख़बरों का मुख्य विषय यही होता. पर आजकल समाचारों का रिकॉर्ड केवल अन्ना की धुन सुना रहा है. कम से कम समाचारों में देश की सारी समस्याएँ ख़त्म हो गयी है न कहीं चोरी हो रही है न डकैती, न कहीं मर्डर हो रहा है न बलात्कार. समाचार बटोरने वालों की तरह कहीं ये सारे अपराधी एक ही जगह इकठ्ठा तो नहीं हो गए है?

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