Thursday, August 11, 2011

हंगामा है क्यों बरपा


अगर प्रकाश झा की 'आरक्षण' फिल्म से आप सहमत नहीं, तो जरूरी नहीं की दूसरा भी असहमति जताए. लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी आपको मिली है तो प्रकाश झा को भी मिली है, यदि आप विरोध ही जताना चाहते है तो आरक्षण पर उनसे बेहतर फिल्म बना कर दिखाईये. और ये बिलकुल मुमकीन है, क्योंकि 'राजनीति' नाम की जो फिल्म उन्होंने बनाई उसमे 'राजनीति' का कोई सबक नहीं था वो एक मसाला फिल्म बनाने की कोशिश थी, और उसपर यथार्थ का जो पर्दा डाला गया था उसकी वज़ह से वह बड़ी अटपटी फिल्म बन कर रह गयी. प्रकाश झा अपनी फिल्म में खुलकर आरक्षण का विरोध करेंगे तो बेहतर होगा, कम से कम उनका असली चेहरा और सोच आपके सामने होगी, और उसका छुपा हुआ विरोध करते है तो भी ठीक है, पर यह जानने के लिए की वो क्या कहना चाहते है फिल्म तो देखने के बाद ही निर्णय लेना ठीक होगा. जिस तरह गुजरात में गुजरात के दंगो से सम्बंधित फिल्मो की रिलीज रोकी जाती थी, उसे सवैधानिक नहीं कहा जा सकता 'परजानियाँ' के साथ यही किया गया था. प्रकाश झा जैसे फिल्मकारों की जेब में एक पैसा नहीं जाना चाहिए, ऐसा सोचना गलत नहीं, प्रकाश झा अक्सर अपनी फिल्मो का नाम ऐसा रखते है जो विवादस्पद हो, जिसके कारण उनकी फिल्म रिलीज होने से पहले ही चर्चित हो जाती है. एक आम दर्शक को उसे देखकर अक्सर निराशा ही हाथ लगती है. 'नाम बड़े और दर्शन छोटे' उनकी ज्यादातर फिल्मो का हश्र यही होता है. बड़े मुद्दों पर एकपक्षीय दृष्टि और घटिया ट्रीटमेंट उनकी फिल्मो की ख़ास विशेषता है. जरुरी है की लोगों को ऐसे चालक फिल्मकारों की चालाकी से बचाया जाये जिनका सरोकार कोई मुद्दा नहीं बस मुद्दों के नाम पर लोगों की भावनाओ को भड़काकर अपनी जेबें भरना है. ऐसे फिल्मकारों को बेहतर जवाब आम जनता ही दे सकती है, अगर हम इस फिल्म की रिलीज का विरोध करेंगे तो लोगों में इस फिल्म के प्रति उत्सुकता और बढ़ेगी. अप्रत्यक्ष रूप से यह इस फिल्म का प्रचार ही होगा, और इसका फायदा होगा जनाब प्रकाश झा जी को.

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