Monday, August 15, 2011

अन्ना, अनशन और इजाजत


आप जिसका विरोध करना चाहते है क्या उसीसे इजाजत लेते है? क्या उससे उम्मीद करते है की वो आपको इजाजत देंगे? अगर आप अनशन करना चाहते है तो ये आपका हक है, भीड़ जुटाना या ताकत दिखाना मकसद नहीं होना चाहिए, वो तो खुद ब खुद दिखेगी अगर आप एक जिन्दा कौम के नागरिक है तो. फूलप्रूफ सुरक्षा के बीच अन्ना के अनशन का साथ देने वाला निश्चित तौर पर भ्रष्ट होगा. जो वाकई में भ्रस्टाचार का शिकार होगा या उससे मुक्ति चाहता होगा, वो बावजूद धारा- १४४ के वहां पहुंचेगा. शामियाने बिछाकर अगर अनशन किये जाते तो आज तक देश आज़ाद नहीं होता.
अन्ना यह अच्छी तरह से जानते है, की वह चाहे तो किसी उजाड़ खेत में भी अनशन कर सकते है. जब वे जंतर मंतर पर बैठे थे तब भी कोई बहुत बड़ी भीड़ उनके साथ नहीं थी पर 'लोग जुड़ते गए और काफिला बढ़ता गया' की तर्ज पर उनका अनशन मीडिया की सुर्ख़ियों में आ गया. अन्ना आज राजघाट पर बैठे तब भी लोगों का बड़ा हुजूम चंद घंटों में उनके साथ आ बैठा. अगर अब भी इस तानाशाह सरकार की नींद नहीं खुलती, तो उसकी बेफिक्री के आलम को क्या नाम दिया जा सकता है.
खैर गोरे तो दूसरे देश से आये थे, इस देश को लूटना और यहाँ के लोगों पर अत्याचार करना ही उनका उद्देश्य था, कम से कम वे गोरे अपने देश के प्रति निष्ठावान थे. पर ये गुलाम मानसिकता के राजनेता और अधिकारी किसके गुलाम हैं? जो रैलियों के लिए लोगों को ट्रकों में भर कर लाते है, तब क्या ट्रैफिक व्यवस्था में बाधा नहीं खड़ी होती, लोगों की जान को खतरा नहीं होता? कैसे रामलीला मैदान इन्हें आसानी से मिल जाता है. अन्ना के पीछे खड़े लोग चाहे जिस जाति या वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रहे हो, यह वक्त सबको अलग अलग करके देखने का नहीं बल्कि यह सोचने का है की यदि आप सरकार की किसी नीति से मतभेद रखते है और उसके खिलाफ व्यापक आन्दोलन खड़ा करना चाहते है, तो इसके लिए कहाँ अर्जी देनी पड़ेगी और अनुमति न मिलने की सूरत में कहाँ सुनवाई होगी.सरकार कहती है, ऐसे में आप कोर्ट जाइए. जहाँ पहले से ही अनगिनत केस पेंडिंग पड़े है. यानी की पूरी उम्र केस के फैसले का इंतजार करते रहिये ताकि वे चैन की नींद सो सकें.

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