Monday, August 8, 2011

बादलों के घेरों के बीच


बादलों के घेरों के बीच से
फूटती थी, कहीं रौशनी
इन्कलाब आने को है
कहती थी ये रौशनी
छिप गया है, सूरज
पर अस्तित्वहीन नहीं
आसमाँ नीला ही नहीं होता
होता है, रंगीन भी
कभी कभी हो जाता है मामला
यूँ ही संगीन भी
क्रांतियाँ यूँ ही
ठंडी हवा सी, बहती रहती है
फिर अचानक से
कोई मशाल जल उठती है
हाथ के साथ
कई हाथ, खड़े होकर
थाम लेते हैं
मुद्दे, कई, बड़े होकर
बरसे, या बिखर जाये
बस दरस देकर,
बादल घिरते है, हमेशा
कोई, सबब लेकर.

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